"रक्तहीन क्रांति" की गूंज: बच्चों ने जीवंत किया कुली बेगार प्रथा का इतिहास!

सुशील कुमार शर्मा

नई दिल्ली: गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी अकादमी-दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित "बाल उत्सव-2025" में एक अद्वितीय नाट्य प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मयूर विहार के कात्यायनी सभागार में मंचित नाटक "झन दिया कुली बेगारा" ने महात्मा गांधी द्वारा "रक्तहीन क्रांति" कहे गए कुली बेगार आंदोलन को जीवंत कर दिखाया। इस नाटक की परिकल्पना, आलेख और निर्देशन की बागडोर प्रख्यात रंग निर्देशक मीना पांडेय ने संभाली, जबकि गीतिका मेहता ने सह-निर्देशन किया।

कुली बेगार: शोषण के खिलाफ अहिंसक संग्राम

उन्नीसवीं सदी में उत्तराखंड में व्याप्त कुली बेगार प्रथा, जहाँ अंग्रेजों द्वारा आम जनता से बिना मजदूरी के बोझ उठवाया जाता था, एक गंभीर शोषण का प्रतीक थी। जनवरी 1921 में "कुमाऊं केसरी" बद्री दत्त पांडे के नेतृत्व में बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में एक विशाल जन आंदोलन हुआ। इस ऐतिहासिक क्षण में, सरयू नदी में कुली रजिस्टर बहाकर कुली बेगार न देने की शपथ ली गई। गांधी जी ने इस आंदोलन को "रक्तहीन क्रांति" की संज्ञा दी क्योंकि यह बिना किसी रक्तपात के, पूर्णतः अहिंसक रूप से सफल हुआ।

प्रतिभा का संगम: मंच पर उभरे बाल कलाकार

नाटक में संगीत संयोजन जीवन चंद्र कलखुंडिया का था, और रूप सज्जा का कार्य सुप्रसिद्ध मेकअप आर्टिस्ट हरी खोलिया ने किया, जिसमें सुचिता साहु ने मंच पर सहयोग किया। साहिबाबाद (गाजियाबाद) निवासी बहुआयामी प्रतिभा की धनी मीना पांडेय, जिन्होंने पिछले 8-10 सालों में रंगकर्म में सक्रिय रहकर कई नाटकों में अभिनय किया है और 5 नाटकों का सफल निर्देशन किया है, ने इस नाटक के माध्यम से बच्चों को उन महान जननायकों से परिचित कराने का उद्देश्य रखा, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को सशक्त किया। नाटक में लक्ष्मी के रूप में नेहा, बद्री दत्त पाण्डेय के रूप में भव्य चंद्र, हरगोविंद पंत के रूप में शनाया चौधरी, गांधी जी के रूप में दक्ष रावत, पटवारी के रूप में सृजन पाण्डेय (मीना पाण्डेय का सुपुत्र), अर्दली के रूप में सार्थक नेगी, कार्यकर्ता के रूप में आलिया और डाईविल के रूप में जाह्नवी के अभिनय को विशेष सराहना मिली। इनके अतिरिक्त, शनाया रावत, रितिक, एकता, साक्षी मानवी, निशा, निर्मला, शगुन, लक्ष्मी, विवान, युवान, सरस्वती, पूर्णिमा, समृद्धि पाण्डेय, आदिरा, अंशिका, राशि, शिवानी सहित अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाएं बखूबी निभाईं।

दर्शकों का अपार स्नेह

सभागार दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था, जहाँ अकादमी से राजू तिवारी, श्रीमती मनराल, के. एन. पाण्डेय, पर्वतीय कला केंद्र के संयुक्त सचिव के. एस. बिष्ट और राकेश शर्मा सहित सैकड़ों गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। इस सफल मंचन ने न केवल बच्चों को इतिहास से जोड़ा बल्कि यह भी दर्शाया कि अहिंसक एकजुटता किस प्रकार शोषण और अत्याचार का प्रभावी ढंग से विरोध कर सकती है।




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