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विभु मिश्रा
गाजियाबाद। बुधवार की रात से गुरुवार सुबह तक गाजियाबाद में जो बारिश हुई, उसने शहर को दरिया में तब्दील कर दिया। ऐसा लगा जैसे आसमान ने शहर पर कहर ढा दिया हो और नगर निगम ने इसके आगे घुटने टेक दिए हों। विकास के बड़े-बड़े दावे करने वाले अफसरान और नेताओं के इलाकों तक पानी में डूब गए, जबकि आम आदमी की जिंदगी जलजंगल में फंस गई।
कालोनियों में पानी ही पानी
शहर की तमाम कालोनियां जैसे शास्त्री नगर, राजनगर, कविनगर, वैशाली, वसुंधरा, संजय नगर, नेहरू नगर, जनकपुरी, विजयनगर, प्रताप विहार, राजेन्द्र नगर, ब्रिज विहार आदि पूरी तरह से जलमग्न हो गईं। कहीं गली-नालियों का फर्क मिट गया, तो कहीं घरों के अंदर तक पानी घुस गया। कविनगर के डी-6/33 फ्लैट का हाल तो सबसे बदतर रहा, जहां पूरे बेसमेंट में 5 फुट तक पानी भर गया। महंगी कारें, स्कूटर और बाइक सब डूब गए।
बेसमेंट पानी से हुए लबालब, डूबी गाड़ियां
राजनगर, आरडीसी, वैशाली, वसुंधरा और कौशांबी जैसे पॉश इलाकों में बने शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और रिहायशी इमारतों के बेसमेंट पानी से लबालब भर गए। कुछ जगहों पर सीवर बैकफ्लो से दुर्गंध फैल गई तो कहीं बिजली के ट्रिपिंग से अंधेरा हो गया। नेहरू नगर में मेयर सुनीता दयाल के आवास के बाहर भी डेढ़ से दो फुट तक पानी जमा रहा। और तो और, नगर आयुक्त विक्रमादित्य सिंह का सरकारी आवास भी जलमग्न हो गया। यह अपने आप में नगर निगम की लापरवाही का पोस्टर बन गया।
पार्क बन गए पोखर
गाजियाबाद के कई प्रमुख पार्क जैसे सिटी फॉरेस्ट, आंबेडकर पार्क, वैशाली सेंट्रल पार्क, राजनगर सेंटर पार्क, आशिक नगर ए- ब्लॉक पार्क आदि में भी दो-दो फुट पानी जमा हो गया। बेंच, झूले और ट्रैक सब डूब गए।
जलभराव से लगा ट्रैफिक जाम
सुबह 8 बजे से ही शहर की सड़कें रेंगने लगीं। खासतौर पर दिल्ली - मेरठ एक्सप्रेस वे, दिल्ली - हापुड़ रोड, विजय नगर, राजनगर एक्सटेंशन, लिंक रोड, मोहन नगर, डासना, एलिवेटेड रोड, मेरठ रोड पर भारी ट्रैफिक जाम लग गया। बारिश के बाद निकले लोग, स्कूल जाने वाले बच्चे, दफ्तर जाने वाले कर्मचारी और मरीज तक कीचड़, गड्ढों और पानी से जूझते नजर आए। पैदल चलना तो दूर, कहीं दो पहिए चालू नहीं हो पा रहे थे तो कहीं कारें ही पानी में दम तोड़ चुकी थीं।
पहले नहीं टूटी निगम की नींद
शहर के इतने हिस्से डूब गए, तब जाकर निगम अधिकारियों की नींद टूटी। रात तीन बजे निगम की स्वास्थ्य विभागबके अधिकारी कर्मचारी सड़कों पर पंप लेकर निकले। इसमें भी अकेले नगरायुक्त आवास से पानी निकालने के लिए दो पंपिंग मशीन और कई कर्मचारी लगाए गए। लोगों का आरोप है कि निगम के लिए टैक्स वसूली और सोशल मीडिया पर दिखावा ही प्राथमिकता है, शहर की ज़मीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं। लोग सोशल मीडिया पर दरिया बने शहर की तस्वीरें और वीडियो पोस्ट कर रहे हैं।
सवालों में डूबा शहर
गाजियाबाद जैसे स्मार्ट सिटी घोषित क्षेत्र में हर साल की बारिश में यही हालात क्यों होते हैं? जल निकासी की करोड़ों की योजनाएं सिर्फ फाइलों में क्यों दिखती हैं? और सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब नेताओं और अफसरों के घर ही डूब गए, तो आम आदमी की सुरक्षा कौन करेगा?
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India
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