भाजपा सांसद के भाई को एक साल की जेल और 30 लाख का जुर्माना, एक क्लिक में पढ़िए पूरा मामला!


विभु मिश्रा
गाजियाबाद। गाजियाबाद की एक अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने एक चेक बाउंस (अनादरण) मामले में अपीलकर्ता भाजपा सांसद और उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री अतुल गर्ग के छोटे भाई संजीव कुमार गर्ग की याचिका को खारिज कर दिया। यह फैसला निचली अदालत के 5 सितंबर, 2024 के निर्णय को बरकरार रखते हुए सुनाया गया है। कोर्ट ने संजीव कुमार को तत्काल गिरफ्तार कर एक साल की साधारण कैद और 30 लाख रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया है। इस जुर्माने में से 29 लाख 50 हजार रुपये शिकायतकर्ता रविंद्र कुमार गर्ग को मुआवजे के रूप में दिए जाएंगे, जबकि बाकी 50 हजार रुपये सरकारी खजाने में जमा होंगे।

​क्या था पूरा मामला?

​यह मामला रविंद्र कुमार गर्ग और संजीव कुमार गर्ग के बीच का है। रविंद्र गर्ग ने अदालत में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनका संजीव गर्ग के साथ पुराना और मैत्रीपूर्ण संबंध था। संजीव गर्ग ने 2012 में गाजियाबाद के अटौर नंगला क्षेत्र में जमीन खरीदने और बेचने के व्यवसाय के लिए उनसे अलग-अलग समय पर कुल 50 लाख रुपये ब्याज पर कर्ज लिया था।
​रविंद्र गर्ग ने बताया कि जब उन्होंने बार-बार अपना पैसा वापस मांगा, तो संजीव गर्ग ने 24 जून, 2020 को 20 लाख रुपये का एक चेक दिया। रविंद्र गर्ग ने यह चेक 15 जुलाई, 2020 को अपने बैंक में जमा किया। लेकिन, अगले ही दिन, 16 जुलाई, 2020 को, बैंक ने सूचित किया कि चेक "पुराना होने" के कारण बाउंस हो गया और उसका भुगतान नहीं हो सका।
​चेक बाउंस होने के बाद, रविंद्र गर्ग ने 22 जुलाई, 2020 को संजीव गर्ग को कानूनी नोटिस भेजा, लेकिन नोटिस मिलने के 15 दिनों के भीतर भी भुगतान नहीं हुआ। इसके बाद, रविंद्र गर्ग ने 24 अगस्त, 2020 को अदालत में शिकायत दर्ज कराई।

निचली अदालत का फैसला

​इस मामले की सुनवाई के बाद, गाजियाबाद की विशेष अदालत ने 5 सितंबर, 2024 को संजीव कुमार को दोषी पाया। अदालत ने उन्हें एक वर्ष के साधारण कारावास (साधारण कैद) और 30 लाख रुपये के अर्थदंड (जुर्माना) की सजा सुनाई। अदालत ने यह भी कहा कि यदि संजीव गर्ग यह जुर्माना अदा नहीं करते हैं, तो उन्हें छह महीने का अतिरिक्त साधारण कारावास भुगतना होगा।

​अपील क्यों हुई खारिज?

​संजीव कुमार ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी और कई तर्क दिए। उनके मुख्य तर्क इस प्रकार थे:
पुराना कर्ज: उन्होंने कहा कि 2012 का कर्ज कानूनी तौर पर लागू करने योग्य नहीं था क्योंकि इसकी समय-सीमा (मियाद) समाप्त हो चुकी थी। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को नहीं माना।
कोर्ट का तर्क: अदालत ने कहा कि जब संजीव गर्ग ने 2020 में रविंद्र गर्ग को नया चेक दिया, तो उन्होंने खुद ही पुराने कर्ज को फिर से स्वीकार कर लिया। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 25(3) के तहत, चेक जारी करने से एक नई कानूनी समय-सीमा शुरू हो गई।
साहूकारी लाइसेंस: संजीव कुमार ने यह भी तर्क दिया कि रविंद्र गर्ग के पास ब्याज पर पैसा देने का कानूनी लाइसेंस नहीं था। कोर्ट ने कहा कि यह कर्ज व्यवसाय के लिए नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और आपसी संबंध के आधार पर दिया गया था, इसलिए साहूकारी अधिनियम (मनी-लेंडिंग एक्ट) इस पर लागू नहीं होता।
आयकर नियमों का उल्लंघन: संजीव गर्ग ने कहा कि 20,000 रुपये से अधिक का नकद लेनदेन आयकर नियमों का उल्लंघन है, इसलिए यह कर्ज अवैध है। इस पर, अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि आयकर नियमों का उल्लंघन दंडनीय है, लेकिन इससे कर्ज गैरकानूनी नहीं हो जाता और यह कानूनी तौर पर लागू करने योग्य बना रहता है।

​गिरफ्तारी और अर्थदंड का आदेश

​अपीलीय अदालत ने संजीव कुमार के सभी तर्कों को खारिज कर दिया और निचली अदालत के फैसले को पूरी तरह से बरकरार रखा। अदालत ने आदेश दिया कि दोषी संजीव कुमार को तुरंत हिरासत में लिया जाए और जेल भेजा जाए ताकि वह अपनी सजा पूरी कर सकें। यह फैसला रविंद्र कुमार गर्ग के पक्ष में एक बड़ी जीत है, जबकि संजीव कुमार के लिए यह एक बड़ा झटका है।

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Comments

  1. जमीनों के घपले तो सांसद अतुल गर्ग पर भी है उनको भी इन मामलों में कार्रवाई होने चाहिए

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