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नई दिल्ली। भाजपा ने विपक्षी गठबंधन पर तीखा हमला बोला है, उन पर संविधान को 'शरिया' में बदलने और 'समाजवाद' के बहाने अपने 'नमाजवाद' को छिपाने का आरोप लगाया है। यह बयान राजद नेता तेजस्वी यादव के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर उनका गुट बिहार में सत्ता में आता है, तो वे संशोधित वक्फ अधिनियम को रद्द कर देंगे। भाजपा ने तेजस्वी यादव के इस रुख की कड़ी आलोचना की है, इसे संसद के फैसले और सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन मामले का अनादर बताया है।
वक्फ अधिनियम और राजनीतिक घमासान
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने सोमवार को संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि बिहार में राजद-कांग्रेस-वामपंथी गठबंधन ने संविधान के प्रति अपने अनादर का प्रदर्शन किया है। उन्होंने जोर दिया कि वक्फ अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया था और वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में इस पर विचार चल रहा है। ऐसे में, किसी राजनीतिक दल द्वारा इसे रद्द करने की बात करना कानून और संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन है। भाजपा ने इसे विपक्षी गठबंधन की वोट बैंक की राजनीति का परिणाम बताया, जो मुस्लिम मतदाताओं के बड़े वर्ग के विरोध के बावजूद उनमें पैठ बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
'समाजवाद' बनाम 'नमाजवाद': भाजपा का आरोप
भाजपा ने विपक्षी गठबंधन पर "नमाजवाद" को बढ़ावा देने के लिए "समाजवाद" का मुखौटा पहनने का आरोप लगाया है। सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि यह गठबंधन केवल मुस्लिम वोटों को लुभाने के लिए काम कर रहा है, भले ही इसके लिए देश के संवैधानिक ढांचे की अनदेखी करनी पड़े। यह आरोप भाजपा की पुरानी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह विपक्षी दलों पर तुष्टिकरण की राजनीति करने और अल्पसंख्यक समुदायों को प्राथमिकता देने का आरोप लगाती रही है। यह बयान भाजपा के उस नैरेटिव को और मजबूत करता है जिसमें वह खुद को राष्ट्रीय हितों का संरक्षक और धर्मनिरपेक्षता का सच्चा पैरोकार बताती है।
संवैधानिक मर्यादा और वोट बैंक की राजनीति
यह विवाद भारतीय राजनीति में एक बड़े मुद्दे को उजागर करता है: संवैधानिक मर्यादा और वोट बैंक की राजनीति के बीच का टकराव। भाजपा का तर्क है कि वक्फ अधिनियम एक वैध संसदीय कानून है और इसे राजनीतिक लाभ के लिए रद्द करने की धमकी देना लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव का रुख संभवतः मुस्लिम समुदाय के उन वर्गों को खुश करने के लिए है जो वक्फ अधिनियम के कुछ प्रावधानों को लेकर चिंतित हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे धार्मिक और सामाजिक मुद्दों का उपयोग अक्सर राजनीतिक दलों द्वारा अपनी चुनावी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है, भले ही इसके लिए संवैधानिक शुचिता को चुनौती देनी पड़े।
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