सुरेन्द्र शर्मा का गज़ल संग्रह 'सोच में आसमान'...समाज का आईना

सुशील कुमार शर्मा

गाजियाबाद। सुरेन्द्र शर्मा, जिनकी आवाज़ दूरदर्शन और रेडियो पर दशकों से गूंजती रही है, अब अपनी शायरी की दुनिया से दिलों पर राज कर रहे हैं। 'सोच में आसमान' नामक ग़ज़ल संग्रह के ज़रिए उन्होंने आम आदमी की ज़िंदगी, समाज की सच्चाइयों और रिश्तों की पेचीदगियों को बेहद सादगी और मार्मिकता से प्रस्तुत किया है। उनकी रचनाओं में संवेदना, संघर्ष, और सरोकार की वो चिंगारी है जो पाठकों को भीतर तक झकझोर देती है।

रेल की पटरियों से मंचीय साहित्य तक का सफर

उत्तर रेलवे के वरिष्ठ विद्युत अभियंता पद से सेवानिवृत्त सुरेन्द्र शर्मा वर्षों तक तकनीकी ज़िम्मेदारियों में लगे रहे, लेकिन भीतर एक सृजनशील कवि हर वक्त जीवित रहा। ‘गुमशुदा व्यक्तियों की जानकारी’ और 'राजधानी से' जैसे दूरदर्शन कार्यक्रमों के पाश्र्व वाचक के रूप में उनकी आवाज़ पहचानी जाती है। उनके स्वर वृत्तचित्रों, प्रोमो, आध्यात्मिक कैसेट्स और सीडी में आज भी गूंजते हैं। मंचों पर अब वह शायरी के जरिए उस समाज की बात कर रहे हैं जिसे उन्होंने बरसों तक नज़दीक से देखा और महसूस किया है।

140 ग़ज़लों में समाया समाज का दर्द और उम्मीदें

इस संग्रह में 140 ग़ज़लें हैं, जिनमें रिश्तों की टूटन, शहर की व्यस्तता, गांव की स्मृतियां, जीवन की विडंबनाएं और उम्मीदों की तपिश समाई हुई है। उनका एक शेर – “शहर की सड़कों ने जब-जब तपाया है हमें, पूछिए मत गांव कितना याद आया है हमें” – आम आदमी की तकलीफ और गांव की ममता को एक ही सांस में बांध देता है। उनकी पंक्तियां – “ग़म से दूर ठिकाने रखिए, लब पर मधुर तराने रखिए” – न सिर्फ भावनाओं को छूती हैं बल्कि जीवन की राह भी दिखाती हैं।

सम्मान, सराहना और शब्दों की शक्ति

उनकी पुस्तक को प्रख्यात कवियों और समीक्षकों ने खूब सराहा है। प्रवीण शुक्ल ने इसे आम जन की ज़िन्दगी का आईना बताया, जबकि डॉ. प्रणव भारती ने इसे ‘संवेदनाओं का खूबसूरत कोलाज’ कहा। गज़लकार मासूम गाजियाबादी ने इसे “जादूभरी आवाज़ और ज़िम्मेदारी भरी सोच का संगम” बताया। सुरेन्द्र शर्मा को विश्व हिन्दी गौरव सम्मान (टोकियो), गज केसरी साहित्य सुधाकर सम्मान, शनिधा साहित्य मनीषी सम्मान, और उत्तर रेलवे राजभाषा पुरस्कार जैसे अनेक सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

प्रसिद्ध शेर जो आज भी गूंजते हैं:

  • “मुश्किल में जब जां होती है, लब पर केवल मां होती है”
  • “आईने को साफ मत कर, धूल चेहरे पर जमी है”
  • “सोच में आसमान रखिएगा, हौसले में उड़ान रखिएगा”
  • “शौक सारे अनगिनत, सुविधा तजी है; तब कहीं मुश्किल से अपनी छत पड़ी है”
  • “संस्कारों की कमी है, बाप-बेटे में ठनी है”





Comments