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नीरू शर्मा
गाजियाबाद। 30 जून को आषाढ़ मास की स्कंद षष्ठी तिथि है, जो भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। यह दिन संतान प्राप्ति, रोगमुक्ति और पारिवारिक सुख की कामना के लिए खास माना जाता है। स्कंद पुराण में वर्णित है कि इस दिन व्रत करने से दंपति को संतान सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
पौराणिक महत्व: स्कंद ने किया था तारकासुर का वध
आषाढ़ शुक्ल षष्ठी को भगवान शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया था। इसी दिन को स्कंद षष्ठी के रूप में देवताओं ने विजय उत्सव की तरह मनाया। तभी से यह तिथि भक्तों के लिए शक्ति, संतान और विजय का प्रतीक मानी जाती है।
व्रत विधि: करें विशेष पूजा और संकल्प
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित करें। पहले भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें, फिर इत्र, चंपा फूल, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित करें। भगवान को चंपा विशेष प्रिय है, इसलिए इसे चंपा षष्ठी भी कहा जाता है।
मंत्र जप से मिलती है कृपा
व्रत के दौरान “ॐ स्कन्द शिवाय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें और भगवान कार्तिकेय की आरती करके तीन परिक्रमा करें। इसके बाद प्रसाद ग्रहण करें। मान्यता है कि इस विधि से व्रत करने वाले दंपति को शीघ्र संतान का वरदान प्राप्त होता है।
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