नगर निगम की लापरवाही से सड़क बनी तालाब, मर्सिडीज डूबी तो आयुक्त को भेजा हर्जाने का 5 लाख का नोटिस

विभु मिश्रा

गाजियाबाद। शहर के नागरिकों का सब्र अब जवाब देने लगा है। हर साल की तरह इस बार भी बारिश हुई, और नगर निगम की नाकामी खुलकर सामने आ गई। फर्क बस इतना है कि इस बार एक समाजसेवी ने सिर्फ अफसोस नहीं जताया — बल्कि सीधे नगर आयुक्त को कानूनी शिकंजे में लेने की शुरुआत कर दी।

ये है पूरा मामला

दरअसल, मामला 23 जुलाई का है जब समाजसेवी अमित किशोर वसुंधरा लौट रहे थे। साहिबाबाद के लाजपत नगर इलाके में उन्हें सड़क नहीं, पानी से लबालब भरी झील जैसी सड़क मिली। गाजियाबाद नगर निगम की लापरवाही का खामियाजा उन्हें तब भुगतना पड़ा जब उनकी लाखों की मर्सिडीज कार पानी में बंद हो गई। कार को बीच सड़क से क्रेन द्वारा निकालकर नोएडा के सर्विस सेंटर ले जाना पड़ा। इस पूरी घटना से उन्हें न केवल आर्थिक नुकसान हुआ, बल्कि मानसिक रूप से भी परेशान हुए। यही नहीं, उन्होंने इसे केवल एक व्यक्ति की परेशानी न मानकर पूरे शहर के साथ होने वाली अन्याय की मिसाल बताया।

नगर निगम को क्यों ठहराया गया जिम्मेदार?

अमित किशोर ने गाजियाबाद नगर आयुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक को कानूनी नोटिस भेजते हुए पाँच लाख रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की है। उनके वकील प्रेम प्रकाश के माध्यम से भेजे गए इस नोटिस में नगर निगम पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं –

  • मानसून से पहले नालों की सफाई न कराना
  • जल निकासी की कोई तैयारी न करना
  • सड़कों पर बेतरतीब अतिक्रमण की अनदेखी 
  • जनता की शिकायतों को नजरअंदाज़ करना

नोटिस में कहा गया है कि जब जनता टैक्स देती है तो उसका हक बनता है कि उसे बुनियादी सुविधाएं मिलें। अगर नगर निगम इन व्यवस्थाओं को ठीक से नहीं निभा पा रहा तो जवाबदेही तय होनी चाहिए।

प्रशासन को चेतावनी, नहीं तो कोर्ट की राह

नोटिस में नगर आयुक्त को जवाब देने के लिए 15 दिनों की समय सीमा दी गई है। वकील प्रेम प्रकाश ने स्पष्ट किया है कि यदि संतोषजनक उत्तर नहीं आया और दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो वे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करेंगे। साथ ही मामला लोकायुक्त, भ्रष्टाचार निवारक ब्यूरो और दीवानी न्यायालय तक भी ले जाया जाएगा। इस बीच नगर आयुक्त मलिक ने मीडिया को दिए एक बयान में निष्पक्ष जांच की बात कही है, मगर जनता अब जांच नहीं, ठोस परिणाम चाहती है। गाजियाबाद में हर साल मानसून के समय जलभराव की समस्या आम होती जा रही है, और अब यह सामान्य असुविधा नहीं बल्कि कानूनी लड़ाई का मुद्दा बन चुकी है।





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