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विभु मिश्रा
गाजियाबाद। क्या आपने कभी देखा है कि कोई अस्पताल सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि लोगों की आत्म-चेतना को भी जगाने लगे? यशोदा मेडिसिटी, इंदिरापुरम इस 21 जून को कुछ ऐसा ही कर दिखाने जा रही है, जहां सुबह 6:30 बजे से एक अनोखा योग महाकुंभ 'योग संगम' के रूप में आकार लेगा। लेकिन ये कोई आम योग कार्यक्रम नहीं होगा। यहां योग सिखाने नहीं, महसूस कराने आएंगे प्रो. रवींद्र मोहन आचार्य जो बेंगलुरु की स्वामी विवेकानंद योग यूनिवर्सिटी के जाने-माने विद्वान हैं। वे योग को केवल शरीर मोड़ने की क्रिया नहीं, बल्कि "भीतर की यात्रा" के रूप में देखने की बात करते हैं।
अस्पताल नहीं, बनेगा 'आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र'
सामान्यत: अस्पतालों से इलाज की उम्मीद की जाती है, लेकिन यशोदा मेडिसिटी ने यह तय कर लिया है कि अब लोग यहाँ सिर्फ स्वस्थ होने नहीं, स्वस्थ जीने का तरीका भी सीखने आएंगे। इस आयोजन में करीब 500 से ज़्यादा लोग शामिल होने वाले हैं — डॉक्टर्स, नर्स, स्थानीय नागरिक और ऐसे लोग जो सिर्फ योग को नहीं, जीवन को समझना चाहते हैं।
सरकार और होटल इंडस्ट्री का भी जुड़ाव
इस पूरे कार्यक्रम को भारत सरकार के आयुष मंत्रालय का समर्थन मिला है और साथ खड़े हैं FHRAI (फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशंस ऑफ इंडिया)। यानी योग अब हेल्थ और हॉस्पिटैलिटी दोनों इंडस्ट्री का हिस्सा बन चुका है।
सोचिए, अगर हर अस्पताल ऐसा करे?
अगर देश के हर अस्पताल ने यशोदा की तरह पहल की, तो मरीज पहले से ही कम होंगे। क्योंकि ये पहल बीमारी को ठीक करने नहीं, बीमारी को होने से रोकने की दिशा में उठाया गया कदम है।


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