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विभु मिश्रा
गाजियाबाद। क्या आप अपने घर के बाहर बंदरों के झुंड देखकर परेशान हैं? क्या उनकी बढ़ती संख्या ने आपकी नींद हराम कर दी है? अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं। उत्तर प्रदेश, खासकर गाजियाबाद, में बंदरों की बढ़ती आबादी और उनसे उपजे मानव-बंदर संघर्ष का मुद्दा अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लिए सिरदर्द बन गया है। गुरुवार, 10 जुलाई, 2025 को कोर्ट ने इस गंभीर समस्या से निपटने में केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों की अजीबोगरीब चुप्पी पर गहरी नाराजगी व्यक्त की। पिछली सुनवाई में दिए गए स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, कोई भी विभाग अपनी कार्ययोजना पेश करने को तैयार नहीं था!
कोर्ट का सब्र टूटा: बार-बार के निर्देशों की अनदेखी
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की पीठ ने 06 मई, 2025 को एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, यूपी सरकार, यूपी राज्य पशु कल्याण बोर्ड, डीएम गाजियाबाद, गाजियाबाद नगर निगम, लोनी, मोदीनगर, मुरादनगर, खोड़ा मकानपुर की नगर पालिका परिषद, सोसाइटी फॉर प्रीवेंशन ऑफ क्रूरता टू एनिमल्स और जीडीए को नोटिस जारी किए थे। कोर्ट ने इन सभी को 10 जुलाई, 2025 तक यह बताने को कहा था कि बंदरों के आतंक से निपटने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं और भविष्य की क्या योजना है। लेकिन गुरुवार की सुनवाई में मुरादनगर नगर पालिका परिषद को छोड़कर किसी ने भी कोर्ट के निर्देशानुसार योजनाएं प्रस्तुत नहीं कीं।
एक महामारी बन चुका है यह मुद्दा
मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने कोर्ट को बताया, "लगभग हर चौथाई जनता इस समस्या से प्रभावित है। यह मुद्दा गंभीर स्तर पर पहुंच गया है और एक महामारी का रूप ले चुका है।" उन्होंने जोर देकर कहा कि एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया का यह कर्तव्य है कि वह एक व्यापक कार्ययोजना तैयार करे ताकि बंदरों को भूख से राहत मिल सके और सबसे महत्वपूर्ण, मानव-बंदर संघर्ष को रोका जा सके। "हर स्तर पर - केंद्र, राज्य, जिला और नगरपालिका स्तर पर - कार्ययोजना होनी चाहिए, जिसमें प्रत्येक वार्ड का आकार, जनसंख्या, घनत्व और अन्य कारकों के आधार पर अलग-अलग होना चाहिए," उन्होंने कोर्ट से कहा।
पशु क्रूरता पर भी सवाल
गाजियाबाद निवासी भाजपा नेता और समाजसेवक विनीत शर्मा और बी.टेक छात्रा प्राजक्ता सिंघल द्वारा दायर याचिका ने न केवल लोगों को होने वाली परेशानियों को उठाया है, बल्कि बंदरों के भोजन की कमी के कारण उनके भूख और कुपोषण के गंभीर मुद्दों को भी रेखांकित किया है। याचिका में बंदरों के मुद्दे से निपटने के लिए एक आपातकालीन कार्ययोजना तैयार करने की मांग की गई है, जिसमें पर्याप्त अस्पताल, पशु चिकित्सा केंद्र, परिवहन/बचाव वाहन, वन क्षेत्रों में पुनर्वास, भोजन की पर्याप्त व्यवस्था और 24×7 शिकायत हेल्पलाइन पोर्टल शामिल हों।
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों और जानवरों के अधिकारों और स्वतंत्रता के सामंजस्य की मांग की गई है, विशेष रूप से भोजन का अधिकार और भूख, कुपोषण व अन्य कारणों से मुक्ति, जो पशु क्रूरता के दायरे में आते हैं।
अब तय होगी जवाबदेही
याचिकाकर्ताओं के दूसरे अधिवक्ता पवन कुमार तिवारी ने इस मामले पर अपनी बात रखते हुए कहा, "बंदरों का मुद्दा सिर्फ इंसानों की सुरक्षा का नहीं है, बल्कि यह उन बेजुबान जानवरों के जीवन और अधिकारों का भी प्रश्न है। अधिकारियों की यह निष्क्रियता अस्वीकार्य है। कोर्ट ने अब स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें अपनी जिम्मेदारियों से भागने नहीं दिया जाएगा। हमें उम्मीद है कि इस फटकार के बाद, वे गंभीरता से कार्ययोजना तैयार करेंगे और इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान निकालेंगे। अब जवाबदेही तय होगी।"
अब इस मामले की अगली सुनवाई 22 अगस्त, 2025 को होगी। क्या इस बार अधिकारी अपनी ढुलमुल नीति छोड़कर ठोस कदम उठाएंगे, या उन्हें एक और कड़ी फटकार का सामना करना पड़ेगा, यह देखना बाकी है।
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