गुरु पूर्णिमा पर सरगम मंदिर का संगीतमय अर्पण, युवा प्रतिभाओं ने जीता दिल

सुशील कुमार शर्मा

ग्रेटर नोएडा। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर, सरगम मंदिर ने स्वर्गीय पंडित जगदीश मोहन की स्मृति को समर्पित एक भव्य संगीतमय कार्यक्रम का आयोजन किया। आइकॉन स्कूल, ग्रेटर नोएडा में आयोजित इस समारोह में पंडित दीपक शर्मा के प्रतिभाशाली शिष्यों ने अपनी मधुर गायन और वादन प्रस्तुतियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। यह आयोजन भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परंपरा और गुरु-शिष्य के अटूट बंधन का एक प्रेरणादायक उत्सव बन गया।

भक्ति और संगीत से हुआ कार्यक्रम का शुभारम्भ

कार्यक्रम का आगाज़ वेदांश मोहन द्वारा प्रस्तुत एक हृदयस्पर्शी गुरु वंदना से हुआ, जिसने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। वेदांश ने राग सरस्वती और नन्द में अपने बड़े और छोटे ख्याल से गहरी छाप छोड़ी, उनकी प्रस्तुति ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। दीप प्रज्वलन के साथ औपचारिक रूप से शुरू हुए इस समारोह में संगीत और कला जगत की कई नामी हस्तियां मौजूद रहीं। मुख्य अतिथि उस्ताद असगर हुसैन (वायलिन वादक), पंडित अजय पी. झा मोहन (वीणा वादक), पंडित ज्ञानेंद्र शर्मा (गायक), विदुषी ज्योति शर्मा, संजय वत्स, डॉ. मधुर लता भटनागर, डॉ. पी. के. भटनागर और योगेंद्र नागर जैसे दिग्गजों की उपस्थिति ने कार्यक्रम की गरिमा को और बढ़ा दिया।

सरगम मंदिर के नन्हे सितारों ने बिखेरे सुरों के जलवे

सरगम मंदिर के युवा छात्रों की मोहक प्रस्तुतियां कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहीं। इन नन्हे कलाकारों ने अपनी प्रतिभा और समर्पण से श्रोताओं और दर्शकों को अंत तक बांधे रखा। आर्यन, धृति, अद्विक, चिराग, रिनिका, रियांश, युवान, अक्षत, आरुष, बिदिम, विरान्त, आरना, अखिलेश, बरखा, रोनिका, मायरा, विवान, अविराज, राधा, मनन, रियांश चौहान, अथर्व झा और शनॉय की प्रस्तुतियाँ विशेष रूप से सराही गईं। उनकी अद्भुत गायन और वादन शैली ने यह साबित कर दिया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत का भविष्य इन युवा प्रतिभाओं के हाथों में उज्ज्वल है।

सम्मान और प्रोत्साहन पाकर खिले चेहरे

कार्यक्रम के समापन पर, मुख्य अतिथियों ने सभी प्रतिभाशाली बच्चों को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए पारितोषिक वितरित किए। यह सम्मान युवा कलाकारों के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन था और उनके गुरुजनों तथा माता-पिता के लिए गर्व का क्षण। पूरे कार्यक्रम और मंच का संचालन स्वाति शर्मा ने बेहद कुशलता और गरिमा के साथ किया, जिससे आयोजन की भव्यता और बढ़ गई। यह संगीतमय संध्या न केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम थी, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा और भारतीय कला की समृद्ध विरासत का एक सुंदर प्रदर्शन भी था।




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