भाव संप्रेषण की कला: संबंधों को मधुर बनाने का मार्ग

डॉ. चेतन आनंद

हम सभी के मन में हर पल कई विचार और भावनाएं उमड़ती हैं, जिन्हें हम दूसरों के साथ साझा करना चाहते हैं। लेकिन, कई बार ऐसा होता है कि हमारे अच्छे इरादे भी गलतफहमी पैदा कर देते हैं, जिससे रिश्ते बिगड़ते हैं और अनावश्यक तनाव पैदा होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम अपने भावों को सही ढंग से व्यक्त करने की कला में पारंगत नहीं होते। यह लेख इसी कला को समझने और उसमें महारत हासिल करने में आपकी मदद करेगा, ताकि आपके व्यक्तित्व का प्रभाव बढ़े और आपके संबंध मधुर बनें।

भाव क्या हैं?

भाव हमारे मन के खयाल, विचार, भावनाएं या किसी व्यक्ति/वस्तु की स्थिति, गुण या विशेषता हो सकते हैं। संस्कृत में 'भव' से उत्पन्न यह शब्द 'होना' या 'अस्तित्व' को दर्शाता है, जो हमारी आंतरिक अवस्था को व्यक्त करता है। मनोभाव, जज्बात, भावना, विचार, अभिप्राय या दशा इसके समानार्थी शब्द हैं।

भावों के प्रकार

भारतीय ग्रंथों में भावों को चार मुख्य प्रकारों में बांटा गया है:

स्थायी भाव: ये 11 प्रकार के होते हैं और इनसे 11 रसों की निष्पत्ति होती है (जैसे शृंगार से रति/प्रेम, हास्य से हंसी, करुण से शोक आदि)।

विभाव: ये दो प्रकार के होते हैं - आलंबन (जिसके कारण भाव उत्पन्न हों) और उद्दीपन (जो भावों को तीव्र करें)।

अनुभाव: ये भी दो प्रकार के होते हैं - सात्विक (अनैच्छिक शारीरिक प्रतिक्रियाएं) और कायिक (इच्छिक शारीरिक क्रियाएं)।

संचारी भाव: ये 33 प्रकार के होते हैं, जो स्थायी भावों के साथ आकर उन्हें पुष्ट करते हैं और क्षणिक होते हैं (जैसे निर्वेद, ग्लानि, शंका, हर्ष आदि)।

ये सभी भाव हमारे जीवन में अनेक तरह से आते हैं और गहरा प्रभाव डालते हैं।

शब्द शक्ति का महत्व

अपने भावों को प्रभावी ढंग से व्यक्त करने के लिए सही शब्दावली का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण है। साहित्य में तीन प्रकार की शब्द शक्तियां बताई गई हैं:

अभिधा: इसमें बात को सीधे-सीधे कहा जाता है (जैसे "तुम मूर्ख हो")। यह अक्सर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

लक्षणा: इसमें बात को लक्षित अर्थ में कहा जाता है (जैसे "तुम गधे हो")।

व्यंजना: यह सबसे प्रभावी होती है, जहां बात का अर्थ व्यंग्य या संकेत के माध्यम से निकलता है (जैसे "तुम तो बहुत विद्वान हो")। यह सुनने वाले को बुरा नहीं लगता और संबंधों में मधुरता बनाए रखता है।

आपको यह तय करना होगा कि आप अपने भावों को किस शब्द शक्ति में अभिव्यक्त करें, ताकि बात भी पहुँच जाए और रिश्ते भी मजबूत रहें।

संप्रेषण के प्रकार

शब्दों के साथ-साथ, भावों को सफलतापूर्वक 'ट्रांसफर' यानी संप्रेषित करने की कला भी आनी चाहिए। संप्रेषण तीन प्रकार का होता है:

 मौखिक: बोलकर अपने भावों को व्यक्त करना।

गैर-मौखिक: शारीरिक भाषा, हाव-भाव और संकेतों के माध्यम से संवाद करना।

लिखित: लिखकर अपने भावों को व्यक्त करना, खासकर तब जब मौखिक और गैर-मौखिक माध्यम काम न करें।

सही संप्रेषण से संबंध सुधरते हैं, समस्याएँ हल होती हैं, और आप दूसरों को प्रेरित कर पाते हैं।

संप्रेषण की बाधाएँ और उन्हें दूर करने के उपाय

संप्रेषण में कुछ सामान्य बाधाएँ आती हैं, जिन्हें पहचानना और दूर करना आवश्यक है:

भाषा की बाधाएँ: शब्दों का गलत चुनाव या अस्पष्टता।

सांस्कृतिक अंतर: विभिन्न संस्कृतियों में हाव-भाव या शब्दों के अलग अर्थ होना।

भावनात्मक बाधाएँ: डर, क्रोध, या पूर्वग्रह का संवाद में हस्तक्षेप।

इन बाधाओं को दूर कर संप्रेषण को बेहतर बनाने के लिए इन बिंदुओं का अभ्यास करें:

भावनाएँ स्पष्ट रूप से व्यक्त करें: अपने मन की बात साफ-साफ और बिना किसी उलझन के कहें।

सुनने और समझने का अभ्यास करें: सिर्फ बोलने पर नहीं, बल्कि दूसरों की बात को ध्यान से सुनने और समझने पर भी जोर दें।

गैर-मौखिक संकेतों पर ध्यान दें: दूसरों की शारीरिक भाषा और हाव-भाव को समझने की कोशिश करें।

अपनी शारीरिक भाषा और आवाज के उतार-चढ़ाव पर ध्यान दें: आपके हाव-भाव और बोलने का तरीका आपकी बात के अर्थ को बदल सकता है।

सांस्कृतिक अंतरों के प्रति संवेदनशील रहें: समझें कि विभिन्न संस्कृतियों में संचार के तरीके अलग हो सकते हैं।

नियमित अभ्यास करें: प्रभावी संप्रेषण एक कला है जिसे निरंतर अभ्यास से ही सुधारा जा सकता है।

यदि आप इन तरीकों को आत्मसात कर लेते हैं, तो आपको जीवन में कभी भी अपने भावों को व्यक्त करने में कठिनाई नहीं होगी। और अगर कभी लगे कि आप अपने भावों को सही से अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे हैं, तो मौन धारण करना सबसे उत्तम उपाय है। मौन आपको तथागत बुद्ध की तरह पूर्ण ज्ञान की ओर ले जा सकता है। लेकिन, समाज और साहित्य में अपना स्थान बनाने के लिए, अपने भावों को सुंदर तरीके से व्यक्त करने की कला सीखना बेहद जरूरी है। तो आज से ही इसका अभ्यास शुरू करें।





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