जीवन सुधारने की उम्मीद के साथ बेटे को भेजा नशा मुक्ति केंद्र, मिली लाश, मां ने लगाये गंभीर आरोप

विभु मिश्रा

गाजियाबाद। ट्रोनिका सिटी क्षेत्र में चल रहे एक नशा मुक्ति केंद्र में 31 वर्षीय युवक की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। मृतक की मां ने आरोप लगाया है कि केंद्र ने लापरवाही और ज़्यादा नींद की गोलियां देकर बेटे की जान ले ली। पुलिस ने मामले में FIR दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

शराब की लत से जूझ रहा था बेटा

मृतक युवक की पहचान मन्निदर सिंह (31) के रूप में हुई है, जिसे 1 जून 2025 को ‘विंग ऑफ लाइफ’ नशा मुक्ति केंद्र, पावी सादकपुर, गाजियाबाद में भर्ती कराया गया था। परिजनों के मुताबिक, मन्निदर लंबे समय से शराब की लत से जूझ रहा था। उसकी मां रेणु पाहवा ने इलाज और बेहतर देखभाल की उम्मीद में केंद्र में दाखिला कराया था। सेंटर के एक स्टाफ विकास गुप्ता ने भर्ती के समय कहा था कि इलाज पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावी होगा।

रातों में दी जाती थीं भारी डोज़

रेणु पाहवा का आरोप है कि भर्ती के कुछ ही दिनों बाद मन्निदर ने फोन पर बताया कि उसे रात में बार-बार नींद की भारी गोलियां दी जाती हैं, जिससे वह बेहद असहज महसूस करता है। हर बार जब मां ने स्टाफ से पूछा तो यही कहा गया कि "इलाज का यही तरीका है।" 11 जून की रात 9:30 बजे उन्हें कॉल आया कि मन्निदर की हालत गंभीर है और उसे दिल्ली के GTB अस्पताल ले जाया जा रहा है। लेकिन जब परिवार अस्पताल पहुंचा, तो देखा कि केंद्र संचालक दिनेश गुप्ता और अन्य कर्मचारी युवक के शव को इमरजेंसी के बाहर छोड़ने की कोशिश कर रहे थे।

FIR दर्ज, पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार

मां रेणु पाहवा ने थाने में दर्ज शिकायत में बताया कि मन्निदर की मौत केंद्र में ही हो चुकी थी, लेकिन अस्पताल ले जाकर उसे ‘मेडिकल केस’ का रूप देने की कोशिश की गई। पुलिस ने प्राथमिक जांच के बाद FIR संख्या 1526 के तहत संचालक विकास गुप्ता और दिनेश गुप्ता के खिलाफ लापरवाही और जान से खिलवाड़ जैसी धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद मामले में आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

नशा मुक्ति केंद्रों पर फिर उठे सवाल

यह घटना न केवल दुखद है, बल्कि ऐसे केंद्रों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करती है। गाजियाबाद समेत कई शहरों में पहले भी नशा मुक्ति केंद्रों में अमानवीय व्यवहार, मारपीट और संदिग्ध मौतों के मामले सामने आ चुके हैं। ऐसे संस्थानों की नियमित निगरानी और मान्यता की प्रक्रिया पर अब गंभीर पुनर्विचार की ज़रूरत है।





टिप्पणियाँ