साहित्य की महफिल में 'गंगा-जमुनी' रंग: बारादरी का यादगार आयोजन

विभु मिश्रा 

गाजियाबाद। कविताओं, गजलों और हाइकु की मनमोहक प्रस्तुतियों से 'बारादरी' की महफ़िल ने एक बार फिर साहित्य प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित इस कार्यक्रम में गीतकारों, शायरों और कवियों ने अपनी कालजयी रचनाओं से समां बांध दिया, जिसे उपस्थित विशाल जनसमूह ने खूब सराहा। गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी पहचान बन चुकी 'बारादरी' ने अपनी साहित्यिक सुगंध से एक यादगार शाम का निर्माण किया।

साहित्यिक सम्मान और पुस्तक लोकार्पण

इस गरिमामय अवसर पर सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. तारा गुप्ता को उनके जीवन पर्यन्त साहित्य सृजन में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए 'जीवन पर्यन्त साहित्य सृजन सम्मान' से नवाजा गया। सम्मान ग्रहण करते हुए डॉ. गुप्ता ने फ़रमाया:

"आपसे मान सम्मान इतना मिला, यूं लगा मेरी तो सदगति हो गई,

प्रेम का सिलसिला यूं ही चलता रहे, अपनी नजरों में मैं फिर कीमती हो गई।"

कार्यक्रम का एक और महत्वपूर्ण आकर्षण बारादरी की संस्थापिका और सुप्रसिद्ध शायरा डॉ. माला कपूर 'गौहर' की पुस्तक 'पंच तत्व' का लोकार्पण रहा, जिसने साहित्यिक जगत में एक नई उम्मीद जगाई।

दिग्गजों की अनुपम प्रस्तुतियां

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मशहूर शायर मोईन शादाब ने 'बारादरी' को देश की सांस्कृतिक पहचान बताते हुए अपने अशआर से दर्शकों को भावविभोर कर दिया। उन्होंने कहा:

"ये किन चिरागों का अहसान ले रहे हैं हम, धुंआ इनमें कुछ ज्यादा है रौशनी कम है।

किसी के साथ गुजारा हुआ वो एक लम्हा, अगर मैं सोचने बैठूं तो जिंदगी कम है।"

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि खालिद अखलाक ने इस मंच पर अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करने को गर्व की बात बताया। उनके दिल को छू लेने वाले शेर ने खूब दाद बटोरी:

"एक तो फूल ही काग़ज़ के उठा लाया है, उसपे ये जिद है इन फूलों से खुश्बू आए।

तू कहां था तुझे ढूंढने, कभी भंवरे, कभी तितली, कभी जुगनू आए।"

शायर जय प्रकाश 'जय', जो अति विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे, ने 'बारादरी' को अदब और तहजीब के तीर्थ के रूप में अपनी पहचान बनाने की बात कही। उनके शेर को भी खूब सराहा गया:

"बहुत हंसे तो कहीं जा के एक बूंद गिरी, हमारी आंख पे रक्खा था भार पानी का।

फ़िराक़ काट रहा हूं मैं ठीक वैसे ही, किसान जैसे करें इंतिज़ार पानी का।"

भावनाओं से ओतप्रोत काव्य पाठ

बारादरी की संस्थापिका डॉ. माला कपूर 'गौहर' ने प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अपने गहरे भावों को इन पंक्तियों में प्रस्तुत किया:

"मेघों से झरता पानी, पर्वत पर जमता पानी, सूरज की गर्मी पाकर, पिघला बर्फ़ीला पानी,

पानी की सुनो कहानी, ख़ुद अपनी राह बनाता, झरनों का निर्झर पानी, नदियों में मीठा बहता, खेतों को सींचे पानी, पानी की सुनो कहानी..."

इसके अलावा उनके शेर भी पसंद किए गए: "हमने मुश्किलों के वक्त में अक्सर, नाम जितने पुकारे तेरे हैं। इस दफा फिर से रुसवा होना है, इस दफा भी इशारे तेरे हैं।"

शायर सुरेन्द्र सिंघल की प्रभावशाली पंक्ति "इन दबी सिसकियों से क्या होगा, लोग बहरे हैं चीखना होगा" को भी सराहा गया। नेहा वैद के गीत की पंक्तियां "बिना सूचना दिए कौन अब, किसके घर आता-जाता है" ने पूरे सदन का ध्यान खींचा। तरुणा मिश्रा ने महफ़िल का बेहतरीन संचालन करने के साथ-साथ अपने अशआर से खूब दाद बटोरी:

"किरदार मेरा, मेरी कहानी न मार दे, मुझको ये बेहिसी, ये उदासी न मार दे।

इक बोलता हुआ जो तअल्लुक़ है आपसे, मुझको ये डर है उसको ख़ामोशी न मार दे।"

ईश्वर सिंह तेवतिया ने अपने गीत "खाली घर की व्यथा" की पंक्तियों से पूरे सदन को भावुक कर दिया:

"मैंने वे दिन भी देखे हैं, जब मैं मुश्किल से सोता था, चहल-पहल इतनी रहती थी, हर दिन उत्सव सा होता था...,

अब तन्हा वीरान पड़ा हूं, मेरे दिल में दुःख अपार है, मेरा द्वार बंद है इसको, फिर खुलने का इंतजार है।"

मासूम गाजियाबादी ने पुलवामा और पहलगाम को लक्षित करते हुए कहा:

"सहर के मुंतजिर थे जो परिंदे उनका क्या होता, जो होती जंग तो वक्त ए सहरी सांझ हो जाती।

चलो अच्छा हुआ जंग रुक गई, वर्ना जहां होती वहां तो कोख धरती की बांझ हो जाती।"

रवि पाराशर के शेर ने भी श्रोताओं का दिल जीता:

"मेरी सूरत तो रही इंसान जैसी ही मगर, मेरे अंदर चाहतों का जानवर जिंदा रहा।

सोचता था बिछड़ते ही सांसें छिन जाएंगी पर, तू उधर जिंदा रहा और मैं इधर जिंदा रहा।"

योगेन्द्र दत्त शर्मा के गीत की पंक्तियां: "हम कवि हैं, हम संत प्रकृति के, हम तुलसी हैं, हम कबीर हैं! पंत, प्रसाद, निराला भी हम, ग़ालिब, मोमिन, दाग़, मीर हैं!" और जगदीश पंकज के गीत की पंक्तियां: "ऊब का उत्सव मनाने के लिए, चुप्पियां लिपिबद्ध होने को चलीं" भी सराही गई।

हाइकु और अन्य रचनाएँ

डॉ. वीना मित्तल ने अपने हाइकु "आंसू छिपा ले, कीमत मांग लेंगे,पोंछने वाले" और "छुआ तुमने, हरारत अब भी, है बदन में" पर खूब दाद बटोरी। अनिमेष शर्मा आतिश, इंद्रजीत सुकुमार, संजीव शर्मा के गीत; सरवर हसन सरवर, विपिन जैन, डॉ. सुधीर त्यागी, अनिल शर्मा, सुप्रिया सिंह वीणा की ग़ज़लें; प्रदीप भट्ट, देवेन्द्र देव, सुरेन्द्र शर्मा, कल्पना कौशिक, दीपक श्रीवास्तव 'नीलपदम', डॉ. नरेंद्र शर्मा व आशा शर्मा की रचनाएं भी भरपूर सराही गईं।

श्रोताओं में ये रहे मौजूद

कार्यक्रम का शुभारंभ आशीष मित्तल की सरस्वती वंदना से हुआ। इस अवसर पर आलोक यात्री, सुभाष चंदर, पंडित सत्य नारायण शर्मा, राकेश मिश्रा, राधा रमण, मनोज शाश्वत, अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव, शकील अहमद सैफ, वागीश शर्मा, डॉ. सुमन गोयल, संजीव नादान, शुभ्रा पालीवाल, ओंकार सिंह, प्रमोद शिशोदिया, डी. डी. पचौरी, मोनिश रहमान, निरंजन शर्मा, नरेंद्र नागर, सुरेश शर्मा अखिल, अशहर इब्राहिम, उत्कर्ष गर्ग, डॉ. भरत शर्मा, शशिकांत भारद्वाज, पराग कौशिक, तेजवीर सिंह, वीरेन्द्र सिंह राठौड़, संजय भदौरिया, डॉ. प्रीति कौशिक, श्रीचंद्र सारस्वत व मसरूर हसन खान सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद रहे।






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