मुरादाबाद के किसान का कमाल: केले के पत्तों से दुगना हुआ खाद का मुनाफा!



शुभम कश्यप

मुरादाबाद। जिले के किसान शुभांकर सिंह ने खेती में एक अनोखा प्रयोग कर दिखाया है, उन्होंने आमतौर पर बेकार समझे जाने वाले केले के पत्तों का इस्तेमाल करके अपनी वर्मी कंपोस्ट खाद की गुणवत्ता को दोगुना कर दिया है, जिससे किसानों को अब बेहतर पैदावार और ज्यादा मुनाफा मिल सकेगा। यह नवाचार न सिर्फ अपशिष्ट का सदुपयोग है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी एक सकारात्मक कदम है।

बेकार पत्तों का शानदार उपयोग

अक्सर केले के खराब पत्ते और छिलके अनुपयोगी मानकर फेंक दिए जाते हैं, जिन्हें जानवर भी नहीं खाते। शुभांकर सिंह ने इसी समस्या का समाधान निकालते हुए इन पत्तों को अपनी वर्मी कंपोस्ट यूनिट को ढकने के लिए इस्तेमाल किया। उनका मानना था कि वर्मी कंपोस्ट तैयार करते समय खाद को ढकना जरूरी होता है, और केले के पत्ते इस काम के लिए एकदम सही थे। चौंकाने वाली बात यह है कि इस तरीके से फास्फोरस और नाइट्रोजन जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की मात्रा खाद में दोगुनी हो गई।

केंचुओं का कमाल और पोषक तत्वों की भरमार

यह पूरी प्रक्रिया केंचुओं की मदद से संभव हुई। शुभांकर सिंह बताते हैं कि केंचुए न केवल सामान्य कचरे को खाते हैं, बल्कि इन केले के पत्तों को भी खाते हैं, जिससे वे भी गलकर खाद का हिस्सा बन जाते हैं। इस सहजीवी प्रक्रिया से खाद में फास्फोरस और नाइट्रोजन की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। इसके अलावा, इस खाद में जैविक कार्बन (Organic Carbon) की मात्रा भी काफी अच्छी पाई गई है। हाल ही में करवाए गए परीक्षण में, खाद का औसत 98.4% आया, जो खेती के लिए असाधारण रूप से फायदेमंद माना जाता है।

दोगुनी ताकत, दोगुनी कमाई

इस अनोखी विधि से तैयार की गई वर्मी कंपोस्ट खाद की शक्ति पारंपरिक खाद की तुलना में दोगुनी हो जाती है। जब किसान इस उन्नत खाद का उपयोग अपनी फसलों में करते हैं, तो उन्हें बंपर पैदावार मिलती है, जिससे उनकी आय में भी अच्छा-खासा इजाफा होता है। शुभांकर सिंह का यह नवाचार सिर्फ एक व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि यह अन्य किसानों के लिए भी एक प्रेरणा है कि कैसे स्थानीय संसाधनों का सदुपयोग करके खेती को और अधिक लाभदायक और टिकाऊ बनाया जा सकता है। यह प्रयोग साबित करता है कि थोड़े से नवाचार और सूझबूझ से कैसे कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।




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