Shabdotsav 2025: बहुभाषी कवि सम्मेलन में साहित्य का अनूठा संगम

गुरु गोविन्द सिंह शब्द सम्मान से कवियों का हुआ सम्मान

विभु मिश्रा

गजरौला। उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी, लखनऊ और श्री वेंकटेश्वरा विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित बहुभाषी कवि सम्मेलन-2025 में देशभर से आए कवियों ने अपनी विविध भाषाओं की रचनाओं से ऐसा समां बांधा कि पूरा माहौल भावनाओं से सराबोर हो गया। इस अवसर पर मंच पर ओज, प्रेम, देशभक्ति और मानवीय मूल्यों की कविताएं गूंज उठीं। समारोह में कवियों को गुरु गोविन्द सिंह शब्द सम्मान, शॉल, स्मृति चिह्न, तुलसी माला और रुद्राक्ष का पौधा भेंट कर सम्मानित किया गया।

सृजन और संस्कृति का संगम

सम्मेलन में दिल्ली, भोपाल, चंडीगढ़, आगरा, लखनऊ, बरेली सहित विभिन्न राज्यों से आए एक दर्जन से अधिक कवियों ने बहुभाषी कविताओं की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई, जिसके बाद पंजाब की प्रसिद्ध कवयित्री जसप्रीत कौर फलक ने अपनी पंजाबी रचना से दिल जीत लिया।

ओज और चेतना से भरा मंच

ओज के कवि डॉ. राहुल अवस्थी ने जहां भगत सिंह और हनी सिंह के संदर्भ से युवाओं को झकझोरा, वहीं कवयित्री डॉ. परविन्दर कौर बेदी ने अपने शेरों में मानव प्रवृत्तियों की गहराई को छू लिया। मंच संचालन भी डॉ. अवस्थी ने उत्साहपूर्वक किया।

प्रेम और देशभक्ति की झलक

विख्यात पंजाबी गायक व कवि मनप्रीत टिवाणा की देशभक्ति से भरी पंक्तियां "जिनां राहवां चौं तू आवें..." ने श्रोताओं को भावुक कर दिया। वहीं डॉ. चेतन आनंद की रचना "मोहब्बत ने खोले अंधेरों के ताले..." ने सभागार को तालियों से गूंजा दिया।

साहित्य की विरासत पर सारगर्भित वक्तव्य

श्री वेंकटेश्वरा समूह के संस्थापक सुधीर गिरी ने कहा, “भारत की साहित्यिक विरासत देश की विकास यात्रा में मार्गदर्शक है।” विश्वविद्यालय के प्रतिकुलाधिपति डॉ. राजीव त्यागी ने टैगोर, महादेवी वर्मा, प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों की प्रेरक भूमिका को रेखांकित किया।

सम्मान और सराहना

अध्यक्षीय मंच पर मौजूद केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के अध्यक्ष प्रो. उमापति दीक्षित, सरदार भूपेन्द्र सिंह भुल्लर, डॉ. सुमेधा, प्रेमवती उपाध्याय और अन्य अतिथियों ने कवियों को सम्मानित किया। मंच पर डॉ. मधु चतुर्वेदी उर्फ डॉ. परविन्दर कौर बेदी की संयोजन भूमिका भी सराहनीय रही।

साहित्य साधना की नई प्रेरणा

इस बहुभाषी कवि सम्मेलन ने जहां साहित्य की विविधता को मंच दिया, वहीं श्रोताओं को भाषा, संस्कृति और भावनाओं की नई ऊर्जा से भर दिया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सभी अधिकारी, प्राध्यापक, कवि और गणमान्य लोग मौजूद रहे।



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