गाजियाबाद में बसी 1947 की टीस: विभाजन की याद में आंखें हुईं नम, दिल में जगा देश सेवा का संकल्प

विभु मिश्रा

गाजियाबाद। कविनगर रामलीला मैदान में 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर हुए कार्यक्रम ने हर आंख को नम कर दिया और हर दिल में देशभक्ति की ज्वाला जगा दी। चित्र प्रदर्शनी और भावुक कर देने वाली गोष्ठी में वक्ताओं ने अपने शब्दों से 1947 की त्रासदी को जैसे जीवंत कर दिया।

चित्रों में दर्द, आंखों में आंसू

कविनगर रामलीला मंच पर लगी प्रदर्शनी में 1947 के विभाजन की सैकड़ों दर्दभरी कहानियां तस्वीरों में कैद थीं। पुराने काले-सफेद फोटो और वीडियो फुटेज में बिखरी भीड़, टूटी पगडंडियां, और आंखों में उम्मीद व भय के मिश्रित भाव — यह सब देखकर वहां मौजूद हर व्यक्ति का मन भारी हो गया। मुख्य विकास अधिकारी अभिनव गोपाल ने विद्यार्थियों को बताया कि कैसे लाखों लोग अपनी जमीन, घर और रिश्ते छोड़कर सिर्फ हिंदुस्तान का हिस्सा बने रहने के लिए पलायन कर गए।

शब्द जो दिल में उतर गए

जानकी सभागार में हुए गोष्ठी सत्र में वक्ताओं की आवाज़ में 78 साल पुराना दर्द साफ झलक रहा था।

विनय कक्कड़ ने मुल्तान के सुनहरे अतीत और जबरन छोड़ने की पीड़ा को याद करते हुए कहा — "हम न भारत से अलग होना चाहते थे, न अपनी जड़ों से।"

वरिष्ठ समाजसेवी जगदीश साधना जब रावी नदी किनारे के अपने गांव की यादों में लौटे, तो उनकी आवाज़ रुंध गई। उन्होंने कहा, "यह सब शब्दों में कहना आसान नहीं, यह दर्द तो दिल में ही जलता रहता है।"

सरदार एस.पी. सिंह, रमन मिगलानी, हरमीत बख्शी और उपेंद्र गोयल ने युवाओं को चेताया कि आज़ादी की कीमत हमेशा याद रखनी होगी, क्योंकि यह लाखों बलिदानों से मिली है।

नारों में गूंजा गर्व

जब ‘जय हिंद—जय भारत’ के नारे गूंजे, तो माहौल जैसे आज़ादी के पहले दिन जैसा हो गया। वक्ताओं ने युवाओं से आह्वान किया कि वे शिक्षा, कार्य और व्यवसाय में उत्कृष्टता हासिल कर भारत को विश्व में अग्रणी बनाएं। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती पूनम शर्मा ने किया, और अंत में चीफ वार्डन ललित जायसवाल ने सभी अतिथियों का धन्यवाद किया। जिला व शिक्षा अधिकारियों, सिविल डिफेंस टीम, विद्यार्थियों और अनेक संस्थाओं के पदाधिकारियों की मौजूदगी ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया।





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