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विभु मिश्रा
नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने सोशल मीडिया पर एक नई जंग छेड़ दी है। एक तरफ रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस और अपार्टमेंट्स ऑनर एसोसिएशन इस फैसले को राहत मान रही हैं, तो दूसरी ओर पशु अधिकार कार्यकर्ता और डॉग लवर्स इसे करुणा के खिलाफ बता रहे हैं। जानिए, कौन क्या कह रहा है।
क्या है कोर्ट का सख्त आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली सरकार, गुरुग्राम, नोएडा और गाजियाबाद के नगर निकायों को आदेश दिया कि सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को तुरंत हटाकर शेल्टर होम में रखा जाए और उन्हें दोबारा सड़कों पर नहीं छोड़ा जाए। कोर्ट का कहना है कि यह कदम नागरिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी है।
फैसले के समर्थन में उठीं आवाजें
रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस और अपार्टमेंट्स ऑनर एसोसिएशन ने कोर्ट के इस निर्देश को जनता के हित में बताया। एक यूज़र ने लिखा, “अगर इस फैसले से दिक्कत है तो कुछ कुत्तों को अपने घर ले जाइए, उनकी वैक्सीनेशन, ट्रेनिंग और इलाज का खर्च उठाइए। सिर्फ सड़क पर बासी रोटी डालना पशु प्रेम नहीं है।”
एक अन्य ने कहा, “किसी बच्चे की जान खतरे में डालना सिर्फ इसलिए सही नहीं कि कोई आवारा कुत्तों पर दया दिखा रहा है।”
एक डॉग लवर यूज़र ने भी स्वीकार किया कि नाइट शिफ्ट वालों के लिए आवारा कुत्तों का खतरा असली है और इस पर रोक लगनी चाहिए।बिहार कांग्रेस की एक महिला कार्यकर्ता ने तो यहां तक कहा कि यह आदेश पूरे देश में लागू हो और सड़क पर कुत्ते खिलाने वालों पर कानून बने। वहीं, करोल बाग के पूर्व महापौर ने इसे ‘दस साल पुराने प्रयास का फल’ बताया।
फैसले के खिलाफ भी तर्क
पशु अधिकार कार्यकर्ता इसे अमानवीय मान रहे हैं। एक यूज़र ने लिखा, “यह आदेश न सिर्फ सहानुभूति की कमी दिखाता है, बल्कि बुनियादी जीव विज्ञान की समझ की भी।”
दूसरे ने कहा, “अगर आपने कभी आवारा कुत्ते से प्यार नहीं किया तो आप दुनिया के सबसे शुद्ध प्रेम से वंचित रह गए। यह फैसला पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 और संविधान में दिए गए कर्तव्यों का उल्लंघन है।”
कुछ ने तो इसे “राजधानी के हर आवारा कुत्ते के लिए मौत की सज़ा” बताया, जबकि एक यूज़र ने उम्मीद जताई कि यह काम करुणा और उचित सुविधाओं के साथ होगा ताकि हर हिलती पूंछ को डर नहीं, सुकून मिले।
बहस जारी
साफ है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश एक संवेदनशील और विवादित मुद्दा बन गया है। जहां एक ओर लोग इसे सुरक्षा और स्वच्छता के लिहाज से जरूरी मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पशु प्रेमी और कार्यकर्ता इसे इंसानियत और करुणा के खिलाफ बता रहे हैं। सोशल मीडिया पर यह ‘स्ट्रे डॉग वार’ अभी थमने का नाम नहीं ले रही।
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