मेडिकल लूट पर लगाम: स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत

✍️ वैभव मिश्र, स्वतंत्र पत्रकार

भारत में स्वास्थ्य सेवाएं, विशेष रूप से निजी अस्पतालों की मनमानी और लूट, आज एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्या बन चुकी है। मरीजों को बेतहाशा बिल, अनावश्यक टेस्ट, और अधूरी सेवाओं के बाद अन्य अस्पतालों में रेफर किए जाने की शिकायतें अब आम हो गई हैं। कई बार मरीज लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी न तो ठीक हो पाते हैं और न ही उन्हें उचित देखभाल मिलती है। यह स्थिति न केवल मरीजों की आर्थिक स्थिति को चोट पहुंचाती है, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा व्यवस्था पर विश्वास को भी कमजोर करती है। सवाल यह है कि इस लूट को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाएं? क्या मरीजों की समीक्षा और अस्पतालों के प्रदर्शन का डेटा एकत्र करना इस दिशा में प्रभावी हो सकता है? क्या मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) के पास मरीजों की रेटिंग और अस्पतालों के प्रदर्शन की निगरानी का दायित्व होना चाहिए?

पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव

क्योंकि निजी अस्पतालों में मरीजों के साथ होने वाली लूट का मूल कारण है पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी। कई बार मरीजों को उनकी बीमारी, इलाज की प्रक्रिया, या लागत के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी जाती। उदाहरण के लिए, एक सामान्य सर्जरी के लिए मरीज को अनावश्यक टेस्ट करवाने पड़ते हैं, जिनका इलाज से कोई सीधा संबंध नहीं होता। कुछ अस्पताल मरीजों को लंबे समय तक भर्ती रखते हैं, ताकि बिल की राशि बढ़ाई जा सके। सबसे दुखद पहलू यह है कि कई बार मरीजों को भारी खर्च के बाद भी ठीक नहीं किया जाता और उन्हें अन्य अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है। ऐसे में मरीज न केवल आर्थिक रूप से टूट जाता है, बल्कि उसका स्वास्थ्य और भी बिगड़ जाता है। यह स्थिति विशेष रूप से निम्न और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए विनाशकारी साबित होती है, जो अपनी जमा पूंजी या कर्ज लेकर इलाज करवाते हैं।

मरीजों को सशक्त बनाने की जरूरत

इस समस्या से निपटने के लिए एक ऐसी व्यवस्था की जरूरत है, जो मरीजों को सशक्त बनाए और अस्पतालों को जवाबदेह बनाए। पहला कदम हो सकता है मरीजों की समीक्षा और रेटिंग प्रणाली को लागू करना। प्रत्येक मरीज को अपने अनुभव के आधार पर अस्पताल की सेवाओं, डॉक्टरों के व्यवहार, बिलिंग प्रक्रिया, और इलाज की गुणवत्ता को रेट करने का अधिकार होना चाहिए। यह रेटिंग स्थानीय स्तर पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) के पास जमा होनी चाहिए। सीएमओ कार्यालय इस डेटा का विश्लेषण करके अस्पतालों की गुणवत्ता का आकलन कर सकता है। इससे कई फायदे होंगे। सबसे पहले, मरीजों को एक ऐसा मंच मिलेगा, जहां वे अपनी शिकायतें और अनुभव साझा कर सकेंगे। दूसरा, खराब रेटिंग वाले अस्पतालों पर नजर रखी जा सकेगी, और जरूरत पड़ने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। तीसरा, यह प्रणाली अन्य मरीजों को अस्पताल चुनने में मदद करेगी, क्योंकि वे रेटिंग के आधार पर सूचित निर्णय ले सकेंगे। उदाहरण के लिए, यदि किसी अस्पताल की रेटिंग लगातार खराब आ रही है, तो मरीज उससे बच सकते हैं, और अस्पताल को अपनी सेवाओं में सुधार करने का दबाव होगा।

अस्पतालों के डेटा का खुलासा

इसके अलावा, अस्पतालों को अपने प्रदर्शन का डेटा सार्वजनिक करने के लिए बाध्य करना चाहिए। इस डेटा में निम्नलिखित जानकारी शामिल होनी चाहिए: पहला, ठीक होने की दर, यानी अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों में से कितने प्रतिशत मरीज पूरी तरह ठीक होकर घर गए। दूसरा, रेफरल दर, यानी कितने प्रतिशत मरीजों को अन्य अस्पतालों में रेफर किया गया। तीसरा, विभिन्न बीमारियों और प्रक्रियाओं के लिए औसत इलाज लागत का खुलासा। यह डेटा न केवल मरीजों को सूचित निर्णय लेने में मदद करेगा, बल्कि अस्पतालों पर अनावश्यक रेफरल और अतिरिक्त खर्च थोपने का दबाव भी कम करेगा। उदाहरण के लिए, यदि कोई अस्पताल बार-बार मरीजों को रेफर कर रहा है, तो यह संदेह पैदा करता है कि क्या वह मरीजों का उचित इलाज करने में सक्षम है या केवल आर्थिक लाभ के लिए ऐसा कर रहा है। इस डेटा को एक केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जो आम जनता के लिए सुलभ हो।

सख्त नियामक ढांचे की मांग

सरकार को निजी अस्पतालों के लिए एक सख्त नियामक ढांचा लागू करना चाहिए। इसके तहत प्रत्येक शुल्क का स्पष्ट विवरण देना अनिवार्य होना चाहिए। मरीजों को बिल में हर मद का विस्तृत ब्यौरा मिलना चाहिए, जैसे दवाइयों की लागत, टेस्ट की फीस, डॉक्टर की फीस, और बेड चार्ज। कई बार मरीजों को एकमुश्त बिल थमा दिया जाता है, जिसमें कोई स्पष्टता नहीं होती। इसके अलावा, प्रत्येक अस्पताल में एक स्वतंत्र नैतिक समिति होनी चाहिए, जो मरीजों की शिकायतों का त्वरित समाधान करे। यदि कोई अस्पताल अनैतिक प्रथाओं, जैसे अनावश्यक टेस्ट या अत्यधिक बिलिंग, में लिप्त पाया जाता है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए। गंभीर मामलों में, अस्पताल का लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है। इसके लिए एक स्वतंत्र नियामक प्राधिकरण की स्थापना जरूरी है, जो निजी अस्पतालों की गतिविधियों पर नजर रखे और मरीजों के हितों की रक्षा करे।

चुनौतियां और समाधान

इन सुधारों को लागू करने में कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती है निजी अस्पतालों का प्रतिरोध। निजी अस्पताल, जो अक्सर बड़े कॉरपोरेट समूहों द्वारा संचालित होते हैं, ऐसे नियमों का विरोध कर सकते हैं, क्योंकि यह उनकी आय को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, डेटा संग्रह और विश्लेषण की प्रक्रिया जटिल हो सकती है। उदाहरण के लिए, मरीजों की समीक्षा को एकत्र करने और उसे सत्यापित करने के लिए एक मजबूत तंत्र की जरूरत होगी, ताकि फर्जी समीक्षाओं को रोका जा सके। भ्रष्टाचार भी एक बड़ी समस्या हो सकती है, क्योंकि कुछ अस्पताल प्रभावशाली लोगों के साथ मिलकर नियमों को तोड़ने की कोशिश कर सकते हैं। फिर भी, इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया जा सकता है, जहां मरीज अपनी समीक्षा और शिकायतें दर्ज कर सकें। यह प्लेटफॉर्म आधार कार्ड या अन्य पहचान पत्र से लिंक हो सकता है, ताकि केवल वास्तविक मरीज ही समीक्षा दे सकें।

जन जागरूकता और तकनीक का योगदान

जन जागरूकता भी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मरीजों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करना जरूरी है। कई मरीज इस बात से अनजान होते हैं कि वे अस्पताल के बिल का विवरण मांग सकते हैं या शिकायत दर्ज कर सकते हैं। सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर जागरूकता अभियान चलाने चाहिए, जिसमें मरीजों को बताया जाए कि वे अपनी आवाज कैसे उठा सकते हैं। इसके लिए स्थानीय स्तर पर हेल्पलाइन नंबर, ऑनलाइन पोर्टल, और सामुदायिक केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं। इसके साथ ही, तकनीक का उपयोग इस समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उदाहरण के लिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग करके मरीजों की समीक्षाओं और अस्पतालों के डेटा का विश्लेषण किया जा सकता है। एआई उन अस्पतालों की पहचान कर सकता है, जो बार-बार अनैतिक प्रथाओं में लिप्त हैं। इसके अलावा, ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करके डेटा को सुरक्षित और पारदर्शी बनाया जा सकता है, ताकि इसमें हेरफेर न हो सके।

विश्वास बहाल करने का समय

मेडिकल क्षेत्र में मनमानी लूट को रोकने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की जरूरत है। मरीजों की समीक्षा और रेटिंग प्रणाली, अस्पतालों के प्रदर्शन डेटा का संग्रह, और सख्त नियामक ढांचा इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। इसके साथ ही, जन जागरूकता और तकनीक का उपयोग इस प्रक्रिया को और प्रभावी बना सकता है। यह समय है कि हम एक ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर बढ़ें, जहां मरीजों का स्वास्थ्य और उनकी जेब दोनों सुरक्षित रहें। केवल पारदर्शिता और जवाबदेही के जरिए ही हम मरीजों का विश्वास जीत सकते हैं और स्वास्थ्य सेवाओं को वास्तव में मानवीय बना सकते हैं।




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