सलाखों के पीछे राखी का रंग, गाजियाबाद जेल में छलक पड़ा अपनापन

विभु मिश्रा

गाजियाबाद। रक्षाबंधन… एक ऐसा त्योहार जो भाई-बहन के रिश्ते में प्यार, सुरक्षा और विश्वास की डोर को और मज़बूत करता है। आमतौर पर यह त्योहार घर-आंगन, हंसी-खुशी और मिठाइयों के बीच मनाया जाता है, लेकिन इस बार गाज़ियाबाद जिला कारागार की सलाखों के पीछे भी राखी के रंग बिखर गए।

सुबह से ही महका माहौल

9 अगस्त 2025 की सुबह जैसे ही जेल के दरवाज़े खुले, बाहर से आई बहनों के चेहरों पर उत्साह और आंखों में आंसुओं की नमी एक साथ थी। उनके हाथों में रंग-बिरंगी राखियां थीं, साथ में मिठास से भरे डिब्बे और ढेर सारा प्यार। जेल परिसर में कदम रखते ही उनके दिल की धड़कनें तेज हो गईं, शायद अपने भाई को इतने समय बाद देखने का उत्साह ही ऐसा था। सुबह 7 बजे से शुरू हुआ यह मिलन का सिलसिला शाम 6 बजे तक चलता रहा। इस दौरान 1157 पुरुष कैदी और 28 महिला कैदी अपने-अपने भाइयों और बहनों से मिले। बाहर से 2926 महिलाएं, 1067 बच्चे, 31 पुरुष भाई और 8 बच्चे इस खास अवसर पर पहुंचे। हर राखी बंधने के साथ दिलों में अपनापन और आंखों में नमी एक साथ उमड़ आती थी।

सुरक्षा और सुविधाओं का खास इंतज़ाम

जेल प्रशासन ने इस मौके को सुरक्षित और सहज बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। पुलिस लाइन डिफेंस, अतिरिक्त पुलिस बल और अलग-अलग स्थानों पर विशेष ड्यूटी लगाई गई। बहनों और बच्चों की सुविधा के लिए टेंट, ठंडा पानी, मोबाइल टॉयलेट और मेडिकल टीम की व्यवस्था रही। यहां तक कि कैदियों ने खुद अपने हाथों से राखियां और उपहार तैयार किए, जो मिलने वालों के लिए अमूल्य यादगार बन गए।

अधिकारियों का साथ और संवेदनाएं

इस पूरे आयोजन की कमान जिला कारागार अधीक्षक ललित कुमार शर्मा और जेलर डी.डी. निफ़ख़त ने संभाली। उनके साथ वरिष्ठ चिकित्सक एम.के. रोमर, उपजेलर बृजेश नारायण पांडेय, अवधेश कुमार, श्रीमती शकोही जैनो, श्रीमती दुर्गा नेगी, श्रीमती गीता यादव सहित कई अधिकारी और कर्मचारी मौजूद रहे। सभी ने कैदियों को न केवल त्योहार की शुभकामनाएं दीं, बल्कि जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का संदेश भी दिया।

भावनाओं से भरे पल

कहीं एक बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाते हुए सिसक रही थी, तो कहीं एक कैदी भाई राखी को सीने से लगाकर मुस्कुरा रहा था। किसी की आंखों से आंसू बह रहे थे, तो कोई चुपचाप अपने भाई का हाथ थामे बैठा था। यह सिर्फ राखी का पर्व नहीं था यह उन रिश्तों की याद थी, जो सलाखों से भी मज़बूत हैं।





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