Justice Delivered: बुलंदशहर हिंसा केस में इंस्पेक्टर की हत्या के पांचों दोषियों को उम्रकैद, 33 को सात-सात साल की सजा

अमन त्यागी

बुलंदशहर। उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित स्याना हिंसा कांड में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या और दंगे के मामले में आज अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। एडीजे कोर्ट ने इंस्पेक्टर की हत्या में दोषी पाए गए 5 लोगों को उम्रकैद और 33 अन्य को 7-7 साल की सजा सुनाई है। यह मामला देशभर में 2018 में सुर्खियों में आया था जब गोकशी की अफवाहों के बाद हिंसा भड़क उठी थी।

हत्या के दोषियों को आजीवन कारावास

कोर्ट ने जिन पांच लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, उनके नाम हैं प्रशांत नट, डेविड, जोनी, राहुल और लोकेंद्र मामा। इन्हें IPC की धारा 302 (हत्या) समेत कई गंभीर धाराओं में दोषी पाया गया। कोर्ट ने इन पर 20-20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

हिंसा फैलाने वाले 33 दोषियों को 7 साल

वहीं हिंसा, आगजनी और हत्या के प्रयास में दोषी पाए गए 33 अन्य आरोपियों को सात-सात साल की सजा सुनाई गई है। इनमें कुछ राजनीतिक और सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग भी शामिल हैं। इन सभी पर 1 से 2 हजार रुपये तक का जुर्माना भी लगाया गया है।

शहीद कोतवाल की पत्नी को मिलेगा मुआवजा

सरकारी वकील यशपाल राघव ने बताया कि कोर्ट ने जुर्माने की 80% रकम शहीद इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की पत्नी रजनी सिंह को मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह फैसला एडीजे गोपाल जी की बेंच से दिया।

कोर्ट के बाहर रही भारी सुरक्षा

फैसले के मद्देनज़र बुलंदशहर कोर्ट परिसर में तीन सीओ और पांच थानों की फोर्स तैनात रही। एएसपी ऋजुल ने खुद सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी की। फैसला सुनाए जाने के बाद सभी दोषियों को जेल भेज दिया गया।

3 दिसंबर 2018: जब भड़की थी हिंसा

पूरा मामला 3 दिसंबर 2018 को स्याना कोतवाली के महाव गांव में गोवंश के अवशेष मिलने से शुरू हुआ। यह खबर फैलते ही हिंदूवादी संगठनों और स्थानीय ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया। योगेश राज नाम के स्थानीय नेता ने भीड़ को इकट्ठा कर पुलिस चौकी पर चढ़ाई करवाई। भीड़ ट्रैक्टर-ट्रॉली में अवशेष भरकर चिंगरावठी पुलिस चौकी पहुंची और पथराव व आगजनी शुरू कर दी। इस दौरान इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी गई, जबकि एक स्थानीय युवक सुमित भी गोली लगने से मारा गया।

पुलिसिया जांच और केस की स्थिति

पुलिस ने हिंसा के बाद 27 नामजद और 60 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया। बाद में चार्जशीट में 44 लोगों को आरोपी बनाया गया। इनमें से 5 की मौत हो चुकी है और 1 आरोपी नाबालिग था, जिसकी सुनवाई किशोर न्यायालय में हुई। मुख्य आरोपी योगेश राज को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी। वहीं, शहीद इंस्पेक्टर की लाइसेंसी पिस्टल अब तक गायब है, जिसका सुराग पुलिस नहीं लगा सकी।

6 साल बाद मिला न्याय

इस घटना को लेकर राज्यभर में भारी नाराज़गी थी। सवाल उठे थे कि पुलिस पर हमला और एक ईमानदार अफसर की हत्या के पीछे किसका हाथ था। अब छह साल बाद 38 आरोपियों को दोषी करार देने और उन्हें सज़ा सुनाने के साथ इस मामले में कानूनी प्रक्रिया ने एक अहम पड़ाव पार कर लिया है।




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