जल और तिल से आगे, सेवा में छुपा है असली पितृ तर्पण

कुमुद मिश्रा
श्राद्ध पर्व को हम अक्सर केवल कर्मकांड से जोड़ते हैं, लेकिन इसका असली अर्थ कहीं गहरा है। पितृ तर्पण केवल तिल और जल अर्पण करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अवसर है हमारे पूर्वजों की याद को समाजोपयोगी कार्यों से जीवित करने का। जब हम श्राद्ध को सेवा, दान और मदद से जोड़ते हैं तो यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि रिश्तों का सच्चा उत्सव बन जाता है।

श्राद्ध का भाव और संदेश

श्राद्ध शब्द ही श्रद्धा से निकला है, यानी आस्था और आदर का भाव। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि पितृ स्मरण केवल उनके नाम की पूजा से पूरा नहीं होता, बल्कि उनके जीवन मूल्यों को निभाने से ही असली श्रद्धांजलि दी जा सकती है। पूर्वजों ने हमें जो संस्कार और त्याग दिए, उन्हें आगे बढ़ाना ही उनकी आत्मा को तृप्त करने का मार्ग है।

कर्मकांड से बढ़कर सेवा

आज जरूरत है कि हम परंपरा को आधुनिक सोच से जोड़ें। यदि श्राद्ध के दिन गरीबों को भोजन मिले, बच्चों को शिक्षा का सहयोग दिया जाए, बीमारों को दवा और फल मिलें या किसी अनाथालय में मदद पहुंचे, तो यह पितरों के नाम पर किया गया पुण्य कार्य होगा। इससे न केवल उनकी नाराजगी दूर होगी, बल्कि उनकी आत्मा भी गर्व और शांति का अनुभव करेगी।

सच्चा सम्मान यही है

पितृ तर्पण केवल जल अर्पण नहीं, बल्कि रिश्तों का पुनर्जीवन है। जब हम उनके नाम से समाज में खुशी फैलाते हैं, तो यही उन्हें असली सम्मान है। यही वह क्षण है जब हमारे श्राद्ध का उद्देश्य पूरा होता है "पूर्वजों की स्मृति में समाज सेवा का संकल्प।"

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