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| रवि अरोड़ा |
किसी राज्य और केंद्र सरकार पर काबिज नेताओं की आपसी रस्साकसी का खामियाजा आम आदमी को कैसे और कितना भुगतना पड़ता है, यह जानना हो तो कृपया पंजाब का एक चक्कर लगा आइए। दशकों बाद आई ऐसी भयंकर बाढ़ में डूबते उतराते राज्य के लाखों लोगों का आज कोई वाली वारिस नहीं है। राज्य के सभी 23 जिलों को आपदा प्रभावी घोषित किया जा चुका है और अब तक 46 लोगों के मरने का समाचार है। राज्य की पौने चार लाख हेक्टेयर कृषि भूमि तबाह हो गई है। लगभग दो हजार गांव पानी में डूबे हुए हैं और लगभग चार लाख लोग उनमें फंसे हुए हैं। मुख्यमंत्री भगवंत मान केंद्र से साठ हजार करोड़ रुपए का राहत पैकेज मांग रहे हैं मगर केंद्र ने अभी तक फूटी कौड़ी भी देना गवारा नहीं किया है। अपनी ओर से राज्य सरकार भी अभी तक केवल 71 करोड़ रुपए ही जारी कर पाई है।
राहत में नदारद बड़े नेता
इस आपदा को लेकर नेता कितने गंभीर हैं, यह समझने के लिए यही तथ्य काफी है कि पंजाब के हालात को देखते हुए अपनी ओर से कोई पहल अथवा कोई दौरा इत्यादि तो दूर देश के बड़े नेताओं का कोई बयान तक नहीं आया है। नतीजा यह है कि राहत कार्यों और अपने ज़ख्मों पर मरहम के लिए राज्य के लोग अब अपने नेताओं से अधिक उन फिल्मी कलाकारों और गायकों पर भरोसा कर रहे हैं जो पंजाब की मिट्टी से उठकर शिखर तक पहुंचे और अब हालात देखकर स्वतः मदद को आगे आए हैं। भगवंत मान पुराने हास्य कलाकार हैं और चुटकियां लेने में सिद्धस्थ हैं, मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनकी तीखी बयानबाजी का फल अब सवा तीन करोड़ की आबादी भोग रही है।
चुनावी रैलियां और मौन सरकार
किसी को उम्मीद नहीं थी कि विधानसभा चुनावों में ताबड़तोड़ रैलियां करने वाले नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह और जेपी नड्डा जैसे बड़े नेता मुसीबत के समय पंजाब से मुंह फेर लेंगे। बेशक इस बार मानसून में उत्तरी भारत के लगभग सभी राज्यों में पचास साल का दूसरा सर्वाधिक पानी बरसा है और जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, राजस्थान जैसे राज्यों का भी काफी नुकसान हुआ है। मगर केंद्र की ओर से उन राज्यों को कुछ न कुछ मदद मिली है, जबकि पंजाब को अब तक पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है।
बाढ़ का कारण और राजनीतिक बदला
यकीनन पंजाब में बाढ़ के हालात बनने का कारण केवल 37 फीसदी अधिक वर्षा होना ही नहीं है। राज्य की बदइंतजामियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। सारा दोष सतलुज, ब्यास और घग्गर जैसी नदियों को देना उचित नहीं, ये तो पहले भी मानसून में लबालब रहती हैं। सवाल यह है कि क्या करोड़ों लोगों को केवल इसलिए भाग्य भरोसे छोड़ दिया जाए कि उन्होंने भाजपा की बजाय आम आदमी पार्टी को वोट दिया? या इसलिए कि किसानों के आंदोलन ने केंद्र को कृषि कानून वापस लेने पर मजबूर किया? मदद न करना अलग बात है, मगर लोगों को “खालिस्तानी” कहना इससे भी बड़ा शर्मनाक अपराध है।
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| बाढ़ पीड़ितों की मदद करते फिल्म स्टार रणदीप हुड्डा |
आत्मनिर्भर पंजाब और सेवाभाव
देश विदेश में जब भी कोई विपदा आई है, पंजाबियों ने आगे बढ़कर सबकी मदद की है। इस बार भी वे सहयोग मांगने की बजाय अपनी और अपनों की मदद खुद कर रहे हैं। तीस हजार से अधिक गुरुद्वारे सेवा में जुटे हैं और पड़ोसी राज्यों के गुरुद्वारे भी पीछे नहीं हैं। विदेशों में रह रहे पंजाबी और देश भर के संगठन भी राहत कार्यों में हाथ बटा रहे हैं। ऐसे में यह साफ दिखता है कि पंजाब की ताकत उसके लोगों के सेवाभाव में ही निहित है।
सोनू सूद और कलाकारों की मिसाल
कोरोना काल में नाम कमा चुके अभिनेता सोनू सूद इस बार भी दिन रात राहत में लगे हैं। उनकी ओर से गांव-गांव खाना, सेनेटरी किट, चिकित्सा वैन, दवाइयां और पशुओं के लिए चारा भेजा जा रहा है। उनकी बहन मालविका सूद भी मैदान में डटी हैं। स्टार रणदीप हुड्डा भी पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की मदद को आगे आए हैं। उन्होंने खुद बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा कर ना सिर्फ पीड़ितों से उनका दर्द साझा किया बल्कि राहत सामग्री वितरित कर उनकी मदद भी की। उनकी देखादेखी एमी विर्क, दलजीत दोसांझ, जिप्पी ग्रेवाल, गुरू रंधावा और करण आहूजा जैसे कलाकार भी गांवों में पहुंचकर राहत बांट रहे हैं। किसी ने गांव गोद लिए हैं तो कोई मेडिकल किट भेज रहा है, मगर सवाल वही है कि क्या जनता ने नेताओं को इसलिए चुना था कि संकट की घड़ी में वे नदारद हों और लोग राहत के लिए सोनू सूद की हेल्पलाइन डायल करें?
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