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गाजियाबाद। डासना जेल अब सिर्फ अपराधियों की सजा काटने की जगह नहीं रही, बल्कि यह शिक्षा और सुधार का केंद्र बन चुकी है। यहां महिला, पुरुष और बाल उपचारी बंदी न सिर्फ पढ़-लिख रहे हैं, बल्कि अपनी जिंदगी को एक नई दिशा दे रहे हैं।
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| डासना जेल में महिला बंदियों के बच्चों का मिल रही शिक्षा |
कारागार के भीतर शिक्षा की पहल
जिला कारागार गाजियाबाद में बंद पुरुष, महिला और बाल उपचारी बंदियों के लिए शिक्षा की विशेष व्यवस्था की गई है। जेल में 10वीं, 12वीं, यूपी बोर्ड, ओपन बोर्ड और सीबीएसई बोर्ड के तहत पढ़ाई कराई जा रही है। कई बंदी हर साल परीक्षाएं देकर अच्छे अंक भी हासिल कर रहे हैं। जेल प्रशासन ने यहां एक हाइटेक लाइब्रेरी और कंप्यूटर क्लास की भी व्यवस्था की है, ताकि बंदियों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ा जा सके।
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| कंप्यूटर शिक्षा लेतीं महिला बंदी और जेल की लाईब्रेरी |
बंदियों के लिए ‘कंप्यूटर क्लासेस’
महिला बंदियों के लिए शिक्षा और सशक्तिकरण की दिशा में ‘कल्पना चावला लाइब्रेरी’ तैयार की गई है। जेल अधीक्षक सीताराम शर्मा के अनुसार, इस लाइब्रेरी का नाम प्रेरणा स्वरूप रखा गया है ताकि महिलाएं अपने भविष्य के प्रति जागरूक और आत्मनिर्भर बनें। कंप्यूटर क्लासेस महिला बंदी गृह के पास ही संचालित की जा रही हैं ताकि आने-जाने में दिक्कत न हो।
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| जेल में शिक्षा गृहण करते महिला-पुरुष बंदी |
बच्चों और बंदियों का उज्ज्वल भविष्य
जेल में उन बच्चों की भी शिक्षा का विशेष ध्यान रखा गया है जो अपनी माताओं के साथ कारागार में रह रहे हैं। इनकी संख्या फिलहाल आठ है, जिनमें से एक बच्चा एलकेजी में बाहर की स्कूल में पढ़ता है। उसकी सुरक्षा और आवागमन की जिम्मेदारी जेल प्रशासन की है। बच्चों को पौष्टिक आहार और खेल-कूद की सुविधाएं भी दी जाती हैं। वहीं, पुरुष बंदियों को योग्यता के अनुसार जेल के अंदर काम भी दिया जाता है, जिसके बदले उन्हें 81 रुपए प्रतिदिन मजदूरी मिलती है।
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| जेल अधीक्षक सीताराम शर्मा |
नई शुरुआत का अवसर
जेल अधीक्षक का कहना है कि कई बंदी अपनी सजा पूरी करने के बाद शिक्षा और कौशल की मदद से समाज में सम्मानजनक जीवन जी रहे हैं। कुछ तो जेल प्रशासन को फोन, पत्र और संदेशों के ज़रिए धन्यवाद भी भेजते हैं। गाजियाबाद जिला कारागार ने यह साबित किया है कि जेल अब केवल सजा का प्रतीक नहीं, बल्कि ‘नई शुरुआत’ का अवसर भी बन चुकी है।
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स्थान:
India
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